बिजली कैसे गिरती है

बिजली कैसे गिरती है

बिजली कैसे गिरती है और बिजली गिरने से क्या होता है, यह सब जानने से पहले हमें बिजली कैसे गिरती है इस बात को अच्छे से समझना होगा ।

बिजली का गिरना और बिजली का चमकना दोनों अलग-अलग चीज़ है।जब बिजली चमकती है तो वह गिरना नहीं होता, जब बिजली पृथ्वी पर किसी चीज से टकराती है तो उसे हम बिजली का गिरना कहते हैं।


बिजली के किसी चीज से टकराने का सम्बंध स्टेटिक चार्ज से है, स्टेटिक चार्ज का मतलब है- दुनिया की हर चीज अणुओं से मिलकर बनी है, 

यदि किसी भी चीज को अणु लेवल तक तोड़ा जाए तो वह अपने मूल पदार्थ के गुणों वाले अणु तक पहुंच जाएगी, यदि आप लोहे को अणुओं से छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं तो वह फिर लोहा नहीं रहेगा।

अणु में तीन चीजें होती हैं-प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन।

न्यूट्रॉन में कोई चार्ज़ नहीं होता लेकिन प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन में बराबर चार्ज होता है, प्रोटॉन के पास धनात्मक (+) और इलेक्ट्रॉन के पास ऋणात्मक (-), इसलिए ही अणु का कुल चार्ज ज़ीरो रहता है,और इसलिए ही सामान्य परिस्थितयों में हर चीज़ का चार्ज़ शून्य रहता है।

लेकिन जब दो पदार्थों की लेयर्स में घर्षण होता है तो इलेक्ट्रॉन एक मटेरियल से दूसरे मटेरियल में चले जाते हैं, और अपने साथ ले जाते हैं थोड़ा-थोड़ा नेगटिव चार्ज, और ये थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा होकर बहुत बड़ा बन जाता है, और इसके चलते दोनों मटेरियल में कुछ चार्ज इकट्ठा हो जाता है. एक में पॉज़ेटिव और दूजे में नेगेटिव।

आप अपने पेन को अपने बालों पर घिसें इससे पेन का नेगेटिव चार्ज कम हो जायेगा क्योंकि कुछ इलेक्ट्रॉन पेन में समा जाएंगे और पेन में पॉजिटिव चार्ज बन जायेगा, यही स्टेटिक चार्ज है, कागज के छोटे टुकड़ों के थोड़ा ऊपर आप इस पेन को घुमायें तो यह कागज के टुकड़ों को अपनी और खींच लेगी, क्योंकि कागज के टुकड़े न्यूट्रल चार्ज में हैं और पेन पॉजिटिव चार्ज में।

स्टेटिक चार्ज़ दो तरह का होता है – जिस पदार्थ में इलेक्ट्रॉन ज़्यादा होंगे उसमें स्टेटिक नेगटिव चार्ज़ और जिसमें प्रोटॉन ज़्यादा होंगे उसमें स्टेटिक पॉज़िटिव चार्ज़।


अब आते हैं बिजली कैसे गिरती है, समुद्र का पानी जब भाप बनकर उड़ता है तो वह ऊपर जाते जाते ठंडा हो जाता है, और पानी की छोटी छोटी बूंदो के रूप में वर्षा वाले बादल का रूप ग्रहण कर लेता है,

लेकिन फिर भी इसका बड़ा होते रहना और ठंडा होते रहना ज़ारी रहता है, बादल का ऊपर का भाग तो इतना ठंडा हो जाता है कि छोटे-छोटे बर्फ के कण बनने लगते हैं, ये बर्फ के कण हवा के कणों से घर्षण करते हैं और इन घर्षणों से उत्पन्न होता है – स्टेटिक चार्ज़।

जानने योग्य बात यह कि इलेक्ट्रान और प्रोटॉन के चार्ज बराबर होने पर भी, ऊपर की साइड पॉजिटिव और नीचे नेगेटिव चार्ज क्यों होता है, क्योंकि, इलेक्ट्रान का वजन ज्यादा होता है, इसीलिए सारा नेगेटिव चार्ज नीचे वाले भाग में आ जाता है, 

जिससे बादलों के नीचे वाले भाग में स्टेटिक नेगेटिव चार्ज बन जाता है। बिजली आसमानी हो या घर वाली, दोनों इलेक्ट्रान की गति से पैदा होती हैं,

"बादल में नेगेटिव और पॉजिटिव दोनो तरह के चार्ज होते हैं, जब ये भारी मात्रा में एक दूसरे के पास आते हैं तो बिजली उतपन्न होती है जिसे हम बादलों के भीतर बिजली चमकना कहते हैं।"

जब एक बादल का नेगेटिव चार्ज दूसरे बादल के नेगेटिव चार्ज के साथ आ जाये तो फिर से बिजली पैदा होती है लेकिन इसे हम बिजली कड़कना कहते हैं।

बिजली चमकना और कड़कना दोनों अलग अलग बाते हैं, अब जान लेते हैं कि, बिजली गिरती कैसे है।बादलों का नेगटिव चार्ज़ जब धरती में ‘डिस्चार्ज’ होता है तो उसे बिजली का गिरना कहते हैं।

जब बिजली ज़मीन पर गिरती है तो उसकी ताकत दस करोड़ वोल्ट होती है, ये कितनी भीषण है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि हमारे घर में सप्लाई होने वाली बिजली की ताकत 220 वोल्ट होती है।

सबसे पहले विद्युत बादल से पृथ्वी की ओर बहती है, जिस रास्ते से ये बहती है उसे ‘स्टेपड लीडर’ कहा जाता है, ‘स्टेपड लीडर’ की रोशनी बहुत मंद होती है और आंखों के लिए दृश्यमान नहीं है. जब ‘स्टेपड लीडर’ जमीन के पर्याप्त करीब होती है 

ठीक उसी वक्त एक ‘स्टेपड लीडर’ ज़मीन से बादल की ओर भी बनती है. जब ये दोनों आपस में मिलती हैं तो एक हाई वोल्टेज का करेंट डिस्चार्ज होता है और वापस ज़मीन की ओर को बहता है. करंट का यह डिस्चार्ज एक उज्ज्वल प्रकाश उत्पन्न करता है जो ‘स्टेपड लीडर’ के रास्ते वापस लौटता है।

इस लौटने वाली रोशनी को देखकर हम सोचते हैं कि शायद बिजली नीचे की दिशा में चल रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि यह ऊपर की दिशा में यात्रा कर रही थी।

बिजली जब बादलों से जमीन पर गिरती है तो इसका तापमान उस समय बेहद गर्म हो जाता है, जो बहुत ही कम समय में रास्ते को बहुत ज्यादा गर्म कर देती है जिससे रास्ते में पड़ने वाली हवा पहले बहुत तेजी से संकुचित होती है, और एक धमाके के साथ फट जाती है, जिससे हम बिजली की आवाज कहते हैं।

अगर बिजली की आवाज़ रोशनी के पांच सेकंड बाद सुनाई देती है तो इसका मतलब है बिजली एक मील दूर गिरी होगी। बिजली का कड़कना 100 मील की दूरी से देखा जा सकता है और आवाज़ 12 मील की दूरी तक सुनी जा सकती है।

अब आते हैं प्रश्न पर इंसान पर बिजली के गिरने से क्या होगा –

बिजली गिरने से 90 फीसदी लोग नहीं मरते, क्योंकि इसका तापमान और वोल्टेज कितने भी ज्यादा हों लेकिन यह सेकंड के 500 वें भाग तक ही रुक पाती है, जैसे किसी गर्म चीज से हाथ लगाकर जल्दी से हटा लेना।


बिजली शरीर के जिस जगह से गुजरती है वहां एक निशान छोड़ जाती है, इसे ‘लिचटेनबर्ग फिगर’ कहा जाता है। बिजली गिरने के डर को एस्ट्राफ़ोबिया कहा जाता है

यदि बिजली किसी पेड़ में गिरे तो पेड़ में विस्फोट हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बिजली के गिरने से उत्पन्न भारी गर्मी, पेड़ के अंदर मौज़ूद नमी को वाष्पीकृत करती है और भाप पैदा करती है जो पेड़ के तने को फोड़कर तेज़ी से बाहर निकलती है।


लेकिन बिजली गिरना पेड़ों के लिए ‘कभी-कभी’ नुकसानदायक और ‘सदा’ लाभदायक होती है,वो इसलिए क्यूंकि बिजली कड़कने के दौरान उसकी गर्मी के चलते नाइट्रोजन और ऑक्सीजन बॉन्ड बनाकर नाइट्रोजन ऑक्साइड बनाते हैं, और इस दौरान जो बारिश पेड़ पौधों में पड़ती है उसमें ‘नाइट्रेट’ की काफी मात्रा होती है, नाइट्रेट पेड़-पौधों और फसलों के लिए लाभदायक होता है।

जब एक बेहद शक्तिशाली बिजली एक चट्टान या रेत पर गिरती है तो इससे उत्पन्न गर्मी की भारी मात्रा के चलते चट्टान या रेत के मिनरल्स आपस में फ्यूज़ हो जाता है। यह संलयन/फ्यूज़न एक ट्यूब के रूप में होता है जिसे फल्गुराईट के नाम से जाना जाता है,इसे बिजली के ‘जीवाश्म’ के रूप में जाना जाता है और अपेक्षाकृत दुर्लभ होने के बावजूद दुनिया के हर कोने में पाया जाता है।

बिजली गिरने से बचने के लिए पैरों में जुते चप्पल पहनें खुले मैदान, इलेक्ट्रिक वस्तुओं, पेडों के नीचे, न रहें, फ़ोन, टीवी आदि न चलायें। घर में अर्थ वाला तार जरूर लगाकर रखें।

Comments

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